मन
आँखें हैं
देख रहे हो
हाथ हैं
छू रहे हो
पांव हैं
चल रहे हो
मन है
मिल क्यों नहीं रहे ?
Thursday, 29 October 2009
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कृतियाँ : - इस दुनिया के अगल बगल( शब्द चित्र ) ,इस जीवन के लिए (कविता संग्रह ) ,रमता जोगी बहता पानी ( शब्द चित्र ) , नासिर के तीन सपने ( शब्द चित्र ) , आचार्य चतुरसेन शास्त्री के उपन्यासों का सांस्कृतिक अध्ययन (शोध) , यशस्वी पत्रकार पंडित झाबरमल्ल शर्मा (आलोचना ) , दादा के पत्र पोते के नाम (संपादन), मेरी लड़ाई लंबी है (विविध ), जीवन के कितने पाठ ( संपादन ) |
"जो पूजाएँ अधूरी रहीं
जो व्यर्थ न गयीं
जो फूल खिलने
से पहले मुरझा गये
और नदियाँ रेगिस्तानों में खो गयींवे भी नष्ट न हुईं
जो कुछ पीछे रह गया जीवन में
जानता हूँ
निष्फल न होगा / जो मैं गा न सका
बजा न सका /हे प्रकृति
वह तुम्हारे साज पर बजता रहेगा ".
--रवींद्रनाथ टैगोर
मन है
ReplyDeleteमिल क्यों नहीं रहे ?
बड़ा प्यारा सवाल है
चन्द शब्दो मे बहुत ही गहरे उतार दिया आपने ..........
ReplyDeleteदो शब्दों मे इतना बडा सवाल ? ये जानने के लिये तो एक उम्र भी कम है बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत सुंदर सोच है आप की
ReplyDeleteकिशोर जी के ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी देख कर इस ब्लॉग पर आने का संयोग बन पड़ा मेरे लिए!
ReplyDeleteआपकी रचनाओं से थोडा परिचय पहले भी रहा है,अब इस नए माध्यम से नियमित आचमन हो सकेगा आपकी लेखनी से निःसृत जल का.
कविता में एक आतंरिक स्फूर्ति है,और कम शब्दों के बीच का अवकाश इसके अंतस तक पहुँचने का सुलभ मार्ग बनते है.
सहज,अभिराम,आत्मीय.
बडा सवाल है.थोडी देर तो लगेगी.
ReplyDeleteSaari kavitayen, bitiya par likha aur doosre sansmaran bahut marmsparshi lage. Abhi kahin padh raha tha ki 'Prtibhashali log iceberg ki tarah hoten hai jinki satah ke oopar ke kad se bheetar ka anuman nahin lagaya ja sakta'. So asha karta hun hun ki abhi hamen sirf iceberg ki oopar ki nok dikhaiyi dihai .Pura iceberg jab samne aayega to kya hoga?
ReplyDeleteAshok Pungalia
chand shabdon me badi gahri baat kah di,aapne..
ReplyDeleteमन है ..मिल क्यों नहीं रहे है ...
ReplyDeleteगूढ़ प्रश्न ...जवाब मिल गया तो बताएँगे ...!!
बहुत खुब..
ReplyDelete(जोधपुर में था तो आपके बारे में सुना था.. ब्लोग पर नियमित पढ़ना होगा..)
बाहर से सरल किन्तु
ReplyDeleteभीतर से अत्यंत कठोर कविता
आत्मीयता से मार डालने वाली.
श्री अशोक जी ,
ReplyDeleteमुझ पर विश्वास के लिए धन्यवाद .पर थोड़ा ज़्यादा नहीं हो गया ?
क्या बात है।
ReplyDeleteकितनी बेबाकी से आपने अपने दिल की बात लिख दी है।
मैं तो आपकी मुरीद हो गयी।
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स्त्री के चरित्र पर लांछन लगाती तकनीक।
चार्वाक: जिसे धर्मराज के सामने पीट-पीट कर मार डाला गया।
शब्दो की जादूगरी है
ReplyDeleteवाह क्या एहसास है
thode se shabdo main aapne bahut kuch likh diya...
ReplyDeletethode se shabdon me bahut badi baat....punjabi me kahte hain na k KUJJE VICH SAMUNDER...congrates.....
ReplyDeleteआंखे, हाथ और पांव सब भौतिक और मन... कविता भी लोजिकल तौर पर उपस्थित होनी चाहिये, उम्मीद है आगे आपसे कुछ और अच्छा पढ़ने को मिलेगा.
ReplyDeleteनमस्ते पद्मजा जी!आप मेरे ब्लॉग पर आयीं शुक्रिया.
ReplyDeleteयही तो तकलीफ है की आदमी ke पास सब कुछ है.
सिवाय इच्छशक्ति के. जो है उसका इस्तेमाल नहीं करता
और जो नहीं है उसे पाने की फिक्र मैं रहता है.
do shabd hi baat ko door talak le gaye ...
ReplyDeleteman, milte kyun nahi....?