आज एक लघु कथा । लघु कथा तो क्या जीवन की सच्चाई ही है। बेटियों के दूर चले जाने पर यादें ही साथ रहती हँ । खुशनसीब हँ हम कि हमारे पास यादें हँ , स्नेह है , अपनापन है । यही सब है जो हमें बचा कर रखता है । मनुष्य बनाये रखता है।इस असंवेदनशील समय में। लघु कथा का शीर्षक है-बेटी
बेटी
वह कमजोर पड़ती है तो मैं मजबूत हो जाती हूँ। मैं उदास होती हूँ तो वह बात बदल देती है। उसका गला भर आता है। कभी- कभी वह बोलते -बोलते रुक सी जाती है। मैं सब समझ जाती हूँ। मेरे भीतर का हाहाकार आँसू बनकर बाहर निकलने को होता है । और मैं फ़ोन कट देती हूँ ।उसका कमरा , अलमारी , कपड़े, फोटो देखती हूँ । उन्हें छूती हूँ । अकेले , सूने घर में रो पड़ती हूँ । फ़िर आँसू पौछती हूँ । पानी पीती हूँ । उसे समय देती हूँ । मैं भी लेती हूँ । और फ़िर से फोन जोड़ती हूँ।अब हम माँ बेटी ऐसे बातें करती हँ जैसे कुछ हुआ ही नहीं। फोन तो नेटवर्क न आने के कारण कट गया था। बस ।लेकिन अंत में वह संयत रहते हुए थोड़ा जोर से भरी - भरी आवाज में कहती है -माँ अपना ख्याल रखना । और अब कभी फोन मत काटना। और ख़ुद फोन काट देती है।
बेटी
वह कमजोर पड़ती है तो मैं मजबूत हो जाती हूँ। मैं उदास होती हूँ तो वह बात बदल देती है। उसका गला भर आता है। कभी- कभी वह बोलते -बोलते रुक सी जाती है। मैं सब समझ जाती हूँ। मेरे भीतर का हाहाकार आँसू बनकर बाहर निकलने को होता है । और मैं फ़ोन कट देती हूँ ।उसका कमरा , अलमारी , कपड़े, फोटो देखती हूँ । उन्हें छूती हूँ । अकेले , सूने घर में रो पड़ती हूँ । फ़िर आँसू पौछती हूँ । पानी पीती हूँ । उसे समय देती हूँ । मैं भी लेती हूँ । और फ़िर से फोन जोड़ती हूँ।अब हम माँ बेटी ऐसे बातें करती हँ जैसे कुछ हुआ ही नहीं। फोन तो नेटवर्क न आने के कारण कट गया था। बस ।लेकिन अंत में वह संयत रहते हुए थोड़ा जोर से भरी - भरी आवाज में कहती है -माँ अपना ख्याल रखना । और अब कभी फोन मत काटना। और ख़ुद फोन काट देती है।