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Wednesday 26 August 2009

कविता

मित्रों , अपने ब्लॉग की शुरुआत एक कविता से कर रही हूँ ।
शीर्षक है" देना "
देना
जैसे पेड़ देते हँ फल
नदियाँ देती हँ जल
फूल देते हँ सुगंध
वैसे ही मैं देती हूँ
ख़ुद को
तुम्हें
इसलिए नहीं कि
मैं तुम से प्रेम करती हूँ
इसलिए भी नहीं कि
तुम मुझे चाहते हो
बल्कि इसलिए कि
तुम भी यह जान सको कि
बिना किसी चाहना के
देना ही
असल में देना है