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Wednesday 28 October 2009

कविता

 सुन्दर दुनिया

पत्थर जोड़कर
बनाई इमारत
इतनी सुन्दर
देखो तो लगे
बोलती सी
इंसानों को जोड़कर
सुन्दर दुनिया
क्यों नहीं बनाता कोई .

4 comments:

  1. भगवान ने तो सुंदर दुनिया ही बनायी थी लेकिन हमी ने इसे बदसूरत बना दिया है। अच्‍छी कविता। बधाई। वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें।

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  2. सबसे पहले तो ब्लोगवाणी से जुड़ने पर बधाई ,अब
    आपके अच्छी रचनाये हमें दिखती रहेंगी , इस रचना
    की तरह

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  3. इंसानों को जोड़कर
    सुन्दर दुनिया
    क्यों नहीं बनाता कोई . ये सवाल खुद से पूछ्ना पडॆगा.

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  4. शायद इसी सवाल का जवाब कतील साहब ने अपनी इस नज़्म में दिया है

    इक-इक पत्थर जोड़ के मैंने जो दीवार बनाई है
    झाँकूँ उसके पीछे तो रुस्वाई ही रुस्वाई है

    बाहर सहन में पेड़ों पर कुछ जलते-बुझते जुगनू थे
    हैरत है फिर घर के अन्दर किसने आग लगाई है

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