नदी
बीहड़ जंगलों में
फैलती है ज्यादा
बस्तियों में जाती सिमट
कितनी निडर
कितनी लाजवंती / नदी
प्रेम में
देती जीवन
और क्रोध में
लील लेती है जीवन / नदी
सूख सकती है
पानी की कमी से
बदल सकती है राहें
पर
मर नहीं सकती
कठिन से कठिन समय में भी / नदी
ढल जाती है
हर हाल में
मिलना हो समंदर से
दौड़ती है सरपट
बनकर भाप
उड़ जाती है आकाश से मिलने / नदी
नदी का स्वभाव
छिपा नहीं किसी से
लेकिन आज तक
कोई नहीं जान सका
कि जब
दिन में खिलखिलाती है तो
रात में क्यों रोती है / नदी
Thursday 22 October 2009
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पदमजा जी, बहुत श्रेष्ठ रचना है। आप कहीं पकड़ ही नहीं आ रहीं, क्या आप ब्लागवाणी से नहीं जुड़ी है?
ReplyDeleteपदमजा जी अच्छे और भाव पूर्ण लेखन के लिए बधाई
ReplyDeleteएक निवेदन-आप कृपया अपने ब्लॉग को ब्लोग्वाणी और
चिट्ठाजगत से लिंक करिए ,शायद आपने ऐसा नहीं किया
है ,क्योंकि कभी देखा नहीं था | मेरे ब्लॉग पर आने का
शुक्रिया
अब हाजिर हूँ . ब्लॉगवानी आदि से जुड़ने का प्रयास करती हूँ .
ReplyDeleteदिन में खिलखिलाती है तो
ReplyDeleteरात में क्यों रोती है / नदी
बहुत गहरी रचना नदी की तरह
आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! मेरे इस ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है -
ReplyDeletehttp://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com
आपने बहुत सुंदर और लाजवाब रचना लिखा है !
पदमजा जी आज आपके ब्लॉग पर आना हुआ. आपकी रचनाएँ पढ़ी और जाना की आप बहुत संवेदनशील उच्च श्रेणी की लेखिका हैं. आप की नदी कविता शब्द कौशल और भावः का अभूतपूर्व संगम है...मुझे आपकी प्यादल कविता ने भी बहुत अधिक प्रभावित किया...छोटे छोटे शब्दों में कितनी गहरी बात...आप की लघु कथा बेटी आँखें भिगो गयी...मानव मन की वेदनाओं को किस अंदाज़ में व्यक्त किया आपने...वाह...आप के ब्लॉग पर आना सार्थक हो गया...इन अद्भुत रचनाओं के लिए आप मेरी बधाई स्वीकार कीजिये...
ReplyDeleteनीरज
नीरज जी ,खुशी हुई यह जानकर कि आपको मेरे ब्लॉग ने निराश नहीं किया .धन्यवाद .
ReplyDeleteपदमजा जी
ReplyDeleteआप मेरे ब्लॉग पर आयीं प्रसन्नता हुई
आपकी कविता नदी, प्यादल दोनों ही उच्चकोटि की हैं
प्यादल कविता मन भिगो गयी. इतना सारा कड़वा सच वो भी एक ही कविता में
बधाई हो
पदमा जी
ReplyDeleteआप मेरे ब्लॉग पर आयीं खुशी हुई,नि:सन्देह आप एक उच्चकोति के रचनाकार है,आपकी रचनाये बेहद खुबसूरत है.............नदी बेहद खुबसूरत कविता है आपकी ......आभार
ओम
सूख सकती है
ReplyDeleteपानी की कमी से
बदल सकती है राहें
पर
मर नहीं सकती
कठिन से कठिन समय में भी / नदी
बहुत खूब......!!
नदी को आपने इस रूप में परिभाषित कि अंतर तक छू गई .....!!
नदी का स्वभाव
छिपा नहीं किसी से
लेकिन आज तक
कोई नहीं जान सका
कि जब
दिन में खिलखिलाती है तो
रात में क्यों रोती है / नदी
सुभानाल्लाह .......!!
लाजवाब कर गई ये पंक्तियाँ ....!!