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Thursday, 22 October 2009

कविता

प्यादल
सीधी चली
बोले-- बनती है
टेढी  चली
बोले --प्यादल है
रुकी
बोले  --हार गयी
झुकी 
बोले --रीढ़  नहीं है 
बैठी
बोले --हिम्मत टूट गयी
उठी
बोले --पर निकल आये
बोली
बोले --जुबान कतरनी है
चुप हुयी
बोले --घुन्नी है
मैं मरी
वे तब चुप हुए

   

2 comments:

  1. bahut hi pyari kavita hai....smaaj me aurt ke jivan yathaarth ko darshaati....bahut khubsurt abhivyakti.....

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  2. बहुत बढ़िया... आपको पढ़ना "भा" रहा है

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