अन्य ब्लॉग

Monday 23 November 2009

कविता

एडिनबरा  में ' माल्या'

माल्या
अपनी माँ से पूछता है सवाल
और वह दे नहीं पाती जवाब

एडिनबरा के एक घर में
माल्या को सिखाती है हिंदी
पर बोलनें में वह करता है आनाकानी
पूछता है सवाल ही सवाल

मेरी भाषा और बच्चों से अलग क्यों है
मैं सीख रहा हूँ हिंदी
तो ये क्यों नहीं
क्या ये  मेरे भाई बहन नहीं
ये नहीं तो फिर कौन हैं
कहाँ हैं 'ग्रांड पा' / 'ग्रांड माँ'

यह इनका है तो मेरा देश कहाँ है / कौन सा है

वह रहना चाहता है वहां
जहाँ सब उसके जैसे दिखते हों
उसकी भाषा बोलते / समझते हों
उसके जैसा खाते पीते हों
घर के बाहर मिटटी में खेलते / लड़ते झगड़ते हों

हद तो तब हुई जब एक दिन
रुआंसा हो कहने लगा माल्या
ममा, इण्डिया चलो
चलेंगे बेटा / अगले बरस
नहीं / अभी का अभी चलो

'बात क्या है बेटा'
'ममा' सीने से लगाकर पूछती है
ममा यहाँ की 'डक'
अंग्रेजी समझती है / हिंदी नहीं
वह यहाँ वाले बच्चों से बात करती है / मुझ से नहीं

माल्या को इण्डिया आना है
जहाँ कम से कम 'डक' तो उसे समझे

माल्या का बालमन घुट रहा है
भीतर धुंवा सा उठ रहा है

ऐसे कई माल्या  हैं
जो पूछ  रहे हैं सवाल
पर मिलते नहीं जवाब
           *

 

17 comments:

  1. ऐसे कई माल्या हैं
    जो पूछ रहे हैं सवाल
    पर मिलते नहीं जवाब ..

    ऐसे अनेकों प्रश्नों के जवाब नहीं होते हैं माता पिता के पास ........ अलग अलग देशों में बसे लोगों की त्रासदी है ये ....
    बहुत ही शाशाक्त भाव हैं इस रचना में ... कमाल का लिखा है ... .

    ReplyDelete
  2. माल्या को इण्डिया आना है
    जहाँ कम से कम 'डक' तो उसे समझे

    अपने परिवेश के लिये मचलते बालमन का अच्छा चित्रण

    ReplyDelete
  3. ऐसे कई माल्या हैं
    जो पूछ रहे हैं सवाल
    पर मिलते नहीं जवाब

    balman ki trasdi aur pardes ka parivesh..........dono ka bahut hi sundar chitran kiya hai.

    ReplyDelete
  4. अपने देश की बात ही और है जी।

    ReplyDelete
  5. apnee sanskirti ko nazdeek se dekhana chahta hai malya.

    ReplyDelete
  6. अद्भुत रचना लिखा है आपने! बहुत ही सुंदर भाव के साथ आपने सच्चाई को प्रस्तुत किया है! बच्चे बहुत कुछ जानना चाहते हैं पर अक्सर माता पिता के पास जवाब नहीं होता है!

    ReplyDelete
  7. अपना देश तो अपना है.. माल्या कि व्यथा पता नहीं सुनी जायेगी या नहीं..

    ReplyDelete
  8. नफ़ीस. आप ही की तरह !

    ReplyDelete
  9. उच्च कोटि की एक उत्कृष्ट रचना है. सधन्यवाद

    ReplyDelete
  10. सच्चाई बयां करती बहुत अच्छी रचना...हम कुछ पाने के लिए कितना कुछ गँवा देते हैं...अपने देश घर से दूर रहना कितना कष्ट प्रद है...मैं जानता हूँ...
    नीरज

    ReplyDelete
  11. न जाने और कितनों के मन में यही बात होगी.बाल मन को अच्छी तरह सामने रखा है.बधाई

    ReplyDelete
  12. माल्या को इण्डिया आना है
    जहाँ कम से कम 'डक' तो उसे समझे

    प्रवासी बालमन की उथल-पुथल को बखूबी पिरोया है आपने ....बहुत सुंदर.....!!

    ReplyDelete
  13. जड़े बुलाती है पर दूर इतने आ गए हैं, लौटना आसान नहीं.माल्‍या की आकुलता कहीं आश्‍वस्‍त भी करती है,सब खत्‍म नहीं हुआ.
    प्रवासी मन में भी अपना घर कहीं रहता है.

    ReplyDelete
  14. दूर देश से आए पौधे
    भले ही नई जमीन पर आ कर जम जांय
    जीवन भर
    अनगिन उंगलियों का दंश झेलते ही रहते हैं
    -ऐसा ही है माल्या का दर्द
    और बहुत गहरी है हर देश के अनागरिकों की पीड़ा
    -नई पौध की नियती बन चुके इस दर्द को आपकी कविता ने
    भली भांती उकेरा है।
    -बधाई।

    ReplyDelete
  15. अगर तूफ़ान में जिद है ... वह रुकेगा नही तो मुझे भी रोकने का नशा चढा है ।

    ReplyDelete
  16. mai soch rahee hoo ki malya kee maa kitana asahaay mahsoos kar rahee hogee .

    ReplyDelete
  17. काफी कुछ कमेंट्स आगये हैं लेकिन सच में एक NRI के जीवन की उक्ताहट को बख़बू उकेरा है...सही में बूढ़े लाचार विविश पिछड़े बीमार भारत को छोड़ कर गये इनके पुरखे या दादा पापा आज भारत की नित नई उंचाइयां देख ऐंसे ही लालायित होतें हैं...पीएम ने रिवर्स ब्रेन ड्रेनेज की आशा भी जताई है...उत्साहित करने वाली कविता वाकई बड़ी सरल और सच्ची है...बाल मन...की सहज संवेदनाएं भाषा संस्कृति विकास से परे होती हैं तभी वो उसी के तरह के लोगों के बीच जाना चाहता है...बधाई

    ReplyDelete