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Thursday, 5 November 2009

क्षणिकाएं

अधर में लड़कियाँ

उड़ा रही हैं हवाई जहाज
छू लिया है आसमान
चाँद पर भी पहुँच रही हैं
लड़कियाँ

मगर धरती पर
कहाँ टिका पा रही हैं
पाँव
लड़कियाँ .

लड़की का कद

बड़ी होती लड़की
नापती है अपना कद
माँ के कद से

ऊँची होकर हर बार
बजाती है तालियाँ
ख़ुशी में

बढ़ती लड़की नहीं जानती कि
माँ
उसकी उम्र में थीं  उस से लम्बी

जैसे जैसे बढ़ती गई उनकी  आयु
घटती  गई
ऊंचाई .

प्रेम

लड़कियाँ कर रही हैं प्रेम
लिख रही हैं प्रेम पत्र

उनकी किताबों से झड़  रही हैं
गुलाब की पंखुडियाँ

वे झांक रही हैं खिड़कियों से
लड़कों की  दुनिया में

क्या
वहां बचा है अब भी
प्रेम .

17 comments:

  1. जैसे जैसे बढ़ती गई उनकी आयु
    घटती गई
    ऊंचाई .
    भावनापूर्ण रचना

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  2. मगर धरती पर
    कहाँ टिका पा रही हैं
    पाँव
    लड़कियाँ....bahut hi behtarin rachna.......

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  3. bahoot hi gahri soch liye हैं aapki rachnaayen ..... naari man aur haalaat ko khoob samjha है aapne ........

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  4. बेहतरीन क्षणिकाए
    बेहद सुन्दर

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  5. वाह, यथार्थवादी रचनाएँ.
    अति सुन्दर.

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  6. IT WAS NICE 2 VISIT YOUR BLOG,KEEP IT UP.
    ANIL OBEROI

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  7. अनिल
    आप मेरे ब्लॉग पर आये . आपको अच्छा लगा . आगे भी आप ब्लॉग को पढ़ते रहें .एक अलग पेशे से जुड़े होने के उपरांत आप ने इधर का रुख किया . धन्यवाद .

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  8. मुझे जीवन में विराधाभासों का आपसी आकर्षण बहुत ही आकर्षित करता है...आज की अधिकांश नयी कवितायेँ कुछ इन्हीं स्वरुप में लिखी जा रही हैं...इस क्रम में एक सुन्दर रचना के लिए बधाई...

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  9. समस्या जो बाकी रह गई प्रश्न के रूप में......

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  10. 'लड़कियों के दुःख अजब हैं' वाली बात कह दी आपने,
    दोनों पहलू ब्यान कर दिए...
    लेकिन...
    यही तो जिंदगी है...
    शाहिद मिर्जा शाहिद

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  11. शाहिद भाई ,
    जिंदगी और सुंदर और अच्छी हो सकती है .

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  12. इन्हें क्षणिका के स्थान पर कविता कहना उचित लग रहा है. धरातल की संवेदना को मुखर करती हुई, गहरे अनुभव और कहीं अभी भी बचे हुए नाजुक नर्म अहसासों से शुद्ध लगाव की कवितायें. बदले हुए समय में हाथ से निरंतर फिसलते हुए लम्हों के बावजूद आखिरी कविता यथार्थ को जानते हुए भी कुछ रूमानी बने रहने का विश्वास दिलाती हैं.

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  13. मेरे मन का पद्य

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  14. A nice thought provoking poem.

    There are few girls who are able to achieve in life else there is a big gap. What has been existing for ages will take time to come to the required level. The education of the girls is bridging this gap and the trend is husbands and wives are now more of friends and equal pertners in life. Yes men will take long time to come out of their ego. Till then the girls will have to struggle.

    But one thing in this process is the suffering of the bringing up of the children. Some balence need to be there as the responsibilities of the parents in this new setup which is taking place. If necessary, the men should be the Homemaker.
    So far as the love is concerned, it is the chemistry which prevails since the women and men are on this earth. This chemistry will continue.

    D. D. Moondra

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  15. मैंने कल कुछ लिखा था किन्तु लगता है कहीं खो गया. पूरा तो सही मैं याद नहीं पर एक बार फिर कोशिश करता हूँ.
    कविताएँ मार्मिक है किन्तु कभी कभी निराशा भी होती है किन्तु सच तो यही है. आपकी कोशिश लाजबाब है.

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