एडिनबरा में ' माल्या'
माल्या
अपनी माँ से पूछता है सवाल
और वह दे नहीं पाती जवाब
एडिनबरा के एक घर में
माल्या को सिखाती है हिंदी
पर बोलनें में वह करता है आनाकानी
पूछता है सवाल ही सवाल
मेरी भाषा और बच्चों से अलग क्यों है
मैं सीख रहा हूँ हिंदी
तो ये क्यों नहीं
क्या ये मेरे भाई बहन नहीं
ये नहीं तो फिर कौन हैं
कहाँ हैं 'ग्रांड पा' / 'ग्रांड माँ'
यह इनका है तो मेरा देश कहाँ है / कौन सा है
वह रहना चाहता है वहां
जहाँ सब उसके जैसे दिखते हों
उसकी भाषा बोलते / समझते हों
उसके जैसा खाते पीते हों
घर के बाहर मिटटी में खेलते / लड़ते झगड़ते हों
हद तो तब हुई जब एक दिन
रुआंसा हो कहने लगा माल्या
ममा, इण्डिया चलो
चलेंगे बेटा / अगले बरस
नहीं / अभी का अभी चलो
'बात क्या है बेटा'
'ममा' सीने से लगाकर पूछती है
ममा यहाँ की 'डक'
अंग्रेजी समझती है / हिंदी नहीं
वह यहाँ वाले बच्चों से बात करती है / मुझ से नहीं
माल्या को इण्डिया आना है
जहाँ कम से कम 'डक' तो उसे समझे
माल्या का बालमन घुट रहा है
भीतर धुंवा सा उठ रहा है
ऐसे कई माल्या हैं
जो पूछ रहे हैं सवाल
पर मिलते नहीं जवाब
*
Monday, 23 November 2009
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ऐसे कई माल्या हैं
ReplyDeleteजो पूछ रहे हैं सवाल
पर मिलते नहीं जवाब ..
ऐसे अनेकों प्रश्नों के जवाब नहीं होते हैं माता पिता के पास ........ अलग अलग देशों में बसे लोगों की त्रासदी है ये ....
बहुत ही शाशाक्त भाव हैं इस रचना में ... कमाल का लिखा है ... .
माल्या को इण्डिया आना है
ReplyDeleteजहाँ कम से कम 'डक' तो उसे समझे
अपने परिवेश के लिये मचलते बालमन का अच्छा चित्रण
ऐसे कई माल्या हैं
ReplyDeleteजो पूछ रहे हैं सवाल
पर मिलते नहीं जवाब
balman ki trasdi aur pardes ka parivesh..........dono ka bahut hi sundar chitran kiya hai.
अपने देश की बात ही और है जी।
ReplyDeleteapnee sanskirti ko nazdeek se dekhana chahta hai malya.
ReplyDeleteअद्भुत रचना लिखा है आपने! बहुत ही सुंदर भाव के साथ आपने सच्चाई को प्रस्तुत किया है! बच्चे बहुत कुछ जानना चाहते हैं पर अक्सर माता पिता के पास जवाब नहीं होता है!
ReplyDeleteअपना देश तो अपना है.. माल्या कि व्यथा पता नहीं सुनी जायेगी या नहीं..
ReplyDeleteनफ़ीस. आप ही की तरह !
ReplyDeleteउच्च कोटि की एक उत्कृष्ट रचना है. सधन्यवाद
ReplyDeleteसच्चाई बयां करती बहुत अच्छी रचना...हम कुछ पाने के लिए कितना कुछ गँवा देते हैं...अपने देश घर से दूर रहना कितना कष्ट प्रद है...मैं जानता हूँ...
ReplyDeleteनीरज
न जाने और कितनों के मन में यही बात होगी.बाल मन को अच्छी तरह सामने रखा है.बधाई
ReplyDeleteमाल्या को इण्डिया आना है
ReplyDeleteजहाँ कम से कम 'डक' तो उसे समझे
प्रवासी बालमन की उथल-पुथल को बखूबी पिरोया है आपने ....बहुत सुंदर.....!!
जड़े बुलाती है पर दूर इतने आ गए हैं, लौटना आसान नहीं.माल्या की आकुलता कहीं आश्वस्त भी करती है,सब खत्म नहीं हुआ.
ReplyDeleteप्रवासी मन में भी अपना घर कहीं रहता है.
दूर देश से आए पौधे
ReplyDeleteभले ही नई जमीन पर आ कर जम जांय
जीवन भर
अनगिन उंगलियों का दंश झेलते ही रहते हैं
-ऐसा ही है माल्या का दर्द
और बहुत गहरी है हर देश के अनागरिकों की पीड़ा
-नई पौध की नियती बन चुके इस दर्द को आपकी कविता ने
भली भांती उकेरा है।
-बधाई।
अगर तूफ़ान में जिद है ... वह रुकेगा नही तो मुझे भी रोकने का नशा चढा है ।
ReplyDeletemai soch rahee hoo ki malya kee maa kitana asahaay mahsoos kar rahee hogee .
ReplyDeleteकाफी कुछ कमेंट्स आगये हैं लेकिन सच में एक NRI के जीवन की उक्ताहट को बख़बू उकेरा है...सही में बूढ़े लाचार विविश पिछड़े बीमार भारत को छोड़ कर गये इनके पुरखे या दादा पापा आज भारत की नित नई उंचाइयां देख ऐंसे ही लालायित होतें हैं...पीएम ने रिवर्स ब्रेन ड्रेनेज की आशा भी जताई है...उत्साहित करने वाली कविता वाकई बड़ी सरल और सच्ची है...बाल मन...की सहज संवेदनाएं भाषा संस्कृति विकास से परे होती हैं तभी वो उसी के तरह के लोगों के बीच जाना चाहता है...बधाई
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