सुलोचना रांगेय राघव के लिए
आपके भीतर
ढलती उम्र में
पिछली एक उम्र ठहरी है
जहाँ नटखट प्रेमिल युवती
ख़ामोश बैठी है
अपने सम्पूर्ण समर्पण / शोखियों के साथ
अवसर मिलते ही
हिरणी सी कुलांचे भरती
गुलाबों सी खिलती
ताज़ा हवा सी बहती
एक रस / एक तान ज़िंदगी में
कई रंग भरती
शाम सी उतरती धरती पर
रात सी मिलती गले
भोर सी लेती अंगड़ाई
किरणों सी बिखरती
चांदनी सी झरती
पत्तों सी सरसराती
शिशु सी कुनमुनाती
और औचक ही लजा जाती
सहज , सरल ,सीधी , निश्छल
नदी सी बहने को
बहुत कुछ कहने को उतावली सी
जाने कैसे तो उड़ती है आकाश में / बहुत ऊँचे
और बुनती है सपनों के इन्द्रधनुष
सुगंध सी घुलकर हवा में
लौट आती है चुपचाप
धरती पर लड़की
-.-
Saturday, 28 November 2009
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सहज , सरल ,सीधी , निश्छल
ReplyDeleteनदी सी बहने को
बहुत कुछ कहने को उतावली सी
भावपूर्ण लाइनें,सहज तरीका
अत्यंत श्रेष्ठ.....
ReplyDeleteअतीत की सुगंध
ReplyDeleteअल्हड लडकपन के अधूरे सपने
और न जाने क्या क्या
यानी
कितना कुछ समेट दिया चंद पंक्तियों में
यही कशिश तो खींच लाती है यहां
और हमें इंतजार रहता है
एक और
एक और नई रचना का...
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
अवसर मिलते ही
ReplyDeleteहिरणी सी कुलांचे भरती
गुलाबों सी खिलती
ताज़ा हवा सी बहती
एक रस / एक तान ज़िंदगी में
कई रंग भरती
bahut hi khubsurat kavita.....
कविता बहुत सुंदर है.
ReplyDeleteकई बार इसको पढ़ा तो सौन्दर्य ही मुझे पर छाया रहा, मैंने कुछ कविताएं विशिष्ट और सामान्य व्यक्तियों को समर्पित पढी है परन्तु ये सबसे अलग.
सुगंध सी घुलकर हवा में
ReplyDeleteलौट आती है चुपचाप
धरती पर लड़की
-.-
और स्त्री के हर रूप /हर ओहदे में ताउम्र ज़िंदा रहती है ये लड़की ...
kavita kya aapne to ek stri ke man ke un bhavon ko shabd de diye jo wo apne antas mein chupaye zindagi gujaar deti hai..........varna armaan to wahan bhi palte hain,sapne to wo aankhein bhi dekhti hain.
ReplyDeleteपिछले साल तक नियमित रहा , अब पुनः अंतर्जाल पर उपस्थित हुआ हूँ.लेकिन अफ़सोस आपकी तरफ आना न हुआ.जब आया तो बस जाने का मन न करता है.बहुत ही व्यवस्थित लेखन है आपका..यही दुआ है, जोर-ए-कलम और ज्यादा! कभी मौक़ा मिले तो खाकसार के ठिकाने पर भी आयें, हौसला अफजाई होगी.
ReplyDeleteबहुत सधी और सीधी शैली है बात कहने की, आपकी. बहुत सुन्दर.
ReplyDeletebahut hee sunder ehsaas liye hai aapakee ye kavita . Badhai
ReplyDeleteसुन्दर कविता ...
ReplyDelete.........कुछ ख्याल जीवन भर रहते हैं और
ऐसे ही उम्र का एक खास पड़ाव
जीवन भर रहता है ...
............आभार .........
ढलती उम्र में
ReplyDeleteपिछली एक उम्र ठहरी है
जहाँ नटखट प्रेमिल युवती
ख़ामोश बैठी है ......
सपनो के माध्यम से मान के कोमल क्षण बाखूबी उतारे हैं आपने इस रचना में .......... लाजवाब रचना है ......
सुन्दर बढ़िया तरीके से आपने अपनी बात कही है ..बहुत पसंद आया आपका लेखन शुक्रिया
ReplyDeleteबहुत बचपन से ही चुप्पा रहने की हिदायत के चलते ये शोख रूप कम ही बाहर आ पाता है पर बहुत बाद तक भी मौका मिलने पर कुलांचे भरने को आतुर रहता है.
ReplyDeleteअन्तरस्पर्शी.सुंदर.
अवसर मिलते ही
ReplyDeleteहिरणी सी कुलांचे भरती
गुलाबों सी खिलती
ताज़ा हवा सी बहती
एक रस / एक तान ज़िंदगी में
कई रंग भरती
bahut saralata se kah daali apne bhav is rachna ne aapki
रात सी मिलती गले
ReplyDeleteभोर सी लेती अंगड़ाई
किरणों सी बिखरती
चांदनी सी झरती
पत्तों सी सरसराती
शिशु सी कुनमुनाती
और औचक ही लजा जाती
---सुंदर वर्णन.. मोहक कविता... बधाई।
बेहतरीन रचना पढ़कर मन प्रसन्न हो जाता है
ReplyDeletebeeta vakt bheetar zinda rahe to zindagi khoobsoorat bani rahti hai........baki nazar ki baat hai.........achchhi rachna ke liye shukriya........
ReplyDeleteशाम सी उतरती धरती पर
ReplyDeleteरात सी मिलती गले
भोर सी लेती अंगड़ाई
किरणों सी बिखरती
चांदनी सी झरती
पत्तों सी सरसराती
शिशु सी कुनमुनाती
और औचक ही लजा जाती
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति कितना कुछ कह दिया
आभार
नयी कवितायेँ भी उतनी ही मर्मस्पर्शी है जितनी पहले लिखी थी. आपकी अभिवय्कती सच में कमाल की है.
ReplyDeletemain yahan aage aakar rachna padh chuki hoon magar tippani box na khulne karan rai na de saki phir dhyaan se utar gaya ,aap bahut sundar likhti hai ,kishore ji blog par gayi unki kahani par tippani dene magar aapki waha jo rachna likhi hai use padh itni bhavuk ho gayi ki aap ki rachna ke liye wahan comments kar aai ,man ko chhu gayi wo baat jo us rachna me hai .ढलती उम्र में
ReplyDeleteपिछली एक उम्र ठहरी है
जहाँ नटखट प्रेमिल युवती
ख़ामोश बैठी है ......yahan bhi wahi baat hai ,mere blog par aapke mile salah par gaur karungi ,shukriya
sorry aage dekhi nahi tippani kar gayi thi wahi main sochi aesi bhool hui kaise ,
ReplyDeleteज्योति जी
ReplyDeleteकई भूलें बड़ी प्यारी होती हैं .आपकी भूल मेरे लिए खुशी का कारण है .ऐसी भूल कम ही होती है और जब होती है तो सामने वाले का मन खिल उठता है .आगे होने वाली ऐसी कई भूलों का यहाँ अभिनंदन .
बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteसुलोचना जी से मिलने का सौभाग्य मुझे मिला है और आप्ने उन पर इतनी सरल सहज और सुलझी कविता लिखकर उनकी याद दिला दी.
ReplyDeleteपिच्ह्ले दिनो मैने रान्गेय राघव जी पर एक पोस्ट लिखी थी.
http://hariprasadsharma.blogspot.com/2010/01/blog-post_17.html
हरि शर्मा
जोधपुर
९००१८९६०७९
कविता नदी सी प्रवहमान ।
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