मेरे लौटने के बाद
वह औंधी मैगजीन को सीधा
खुली किताब को बंद
और बंद को ठूँसता है शेल्फ में
कागज /कलम निकाल
जलाता बुझाता लैंप
करता है लिखने का प्रयास
पर कर कुछ नहीं पाता
मेज पर फडफडाते लिखे/अनलिखे पन्नों को
दबोचता है मुठी में और
बनाकर गेंद फेंक देता है
चिडियों के बीच
वे उड़ जाती हैं चोंक कर
रह जाता है चहबच्चों में भरा पानी
ध्यान हटाने के लिए पीता है चाय
'अच्छी बनी है '
सोचता है इत्मिनान से
क्या वह भी याद करती होगी मुझे
मेरी तरह
क्या कर रही होगी अभी इस समय
हंस रही होगी किसी बात पर
या बतिया रही होगी किसी से
कहाँ होगी उसे फुर्सत मेरे लिए
चाय हो जाती है फीकी
प्रेम गीत की
अंतिम पंक्ति लिखने से पहले
चीखना चाहता है वह जोर से
मुझे 'वही' चाहिए
अभी इसी पल ताकि
उसे दिखा सकूँ
पेड़ों की पसरती छायाएं
सूरज के गोले का
उतरना पहाडी के पार
आकाश में सितारों का जमघट
शाम की जादुई हवा
पर चीखते चीखते
आवाज रह जाती है घुटकर कंठ में
मेरे आने के बाद
मेरी याद में
याद आते हैं उसे
मेरे द्वारा फेंके
लाल चूड़ी के टुकड़े
जिन्हें चुनकर
बनाता है फिर से गोल और
मेरी कमीज से उतरे बाल को
दबाता है चूड़ी के टुकड़े तले
मेरे न होने पर
मेरे होने को साबित करने की जिद में
खींचकर मेरी तस्वीर
कर डालता है टुकड़े -टुकड़े
और फिर से जोड़कर
देता है एक नई विधा को जन्म
होता है खुश
खोई गेंद मिलने पर बच्चे की तरह
कई बार उसे मेरी याद आती है तब जब
मैं बैठी होती हूँ ठीक उसके सामने
उसकी आँखें जादू की तलवार सी
काटती रहती हैं मुझे
पर मेरी आस्था है फिर भी जादू में
उसका जादू नहीं होता कभी फेल
यह अलग बात है कि
कटकर मैं
बच जाती हूँ हर बार साबुत
पहले की तरह
कितनी अच्छी है यह धरती
वह जीना चाहता है
बरसों तक इस धरती पर
और मैं उसके साथ
जन्मों तक .
Sunday, 15 November 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
ध्यान हटाने के लिए पीता है चाय
ReplyDelete'अच्छी बनी है '
सोचता है इत्मिनान से
क्या वह भी याद करती होगी मुझे
मेरी तरह
उम्दा...इस यथार्थ को उकेरना इतना सरल तो नहीं.....बधाई...
बहुत ही भावपूर्ण रचना .बधाई .
ReplyDeleteकविता कई लेयर्स में हैं. भाव और संवेदन के स्तर को समझने के लिए कुछ गेप्स पाठक को भरने होंगे. मुझे कई बार लगा कि कविता को अंत से आरम्भ तक पढा जाये. कुछ फीलिंग्स आपने अनकही भी छोड़ दी है. उन्हें ओढ़ने पहनने के लिए अपने आपको खाली करना जरूरी है. वैसे सोचता हूँ कि ये तय नहीं किया जा सकता कि आपकी कविताओं को कितनी बार पढ़ा जाना चाहिए, मेरे विचार से बार-बार ताकि पहुंचा जाये उस कोमल मन तक जिसने सख्त ज़मी और सूखे हुए तल्ख़ मनोभावों पर कुछ नयी उम्मीदें अब भी बचा रखी हैं.
ReplyDeleteमोहतरमा डा. पदमजा शर्मा साहिबा
ReplyDeleteऐसा ही होता है..
तभी तो प्रो. वसीम बरेलवी ने कहा है-
जो एक बोझ था, इक शाम जब नहीं लौटा,
उसी परिन्दे का शाखों ने इन्तजार किया.
इन भावनाओं को शब्दों की माला में पेश करने के लिये बधाई
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
किशोर ,
ReplyDeleteकई बार दो शब्दों के बीच का गॅप वो बात खामोशी से कह देता है जो बहुत सारे शब्द नहीं कह पाते . आप हमेशा साफ साफ बात नहीं कर सकते . सदा यह संभव नहीं हो पाता . क्योंकि सदा आप एक से मूड में कहाँ रह पाते हैं .और हाँ , जीवन भी इतना सरल कहाँ होता है ? अगर 'गैप्स' आप में रचना बार बार पढ़ने की उत्सुकता जगाते हैं तो रचना कुछ कुछ सफल कही जा सकती . अनकहे को अगर आप जैसा पढ़ने वाला पकड़ पाता है तो यह उसकी रचनात्मक क्षमता है . अन्यथा रचना की कमज़ोरी , शायद .
... बेहद प्रसंशनीय रचना !!!!
ReplyDeleteआपकी कविता से कही अमृता ही तो नहीं झांक रही है ...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना ...!!
पदमजा जी,
ReplyDeleteमैंने एक पाठक के रूप में अपनी पहली फीलिंग आप तक पहुंचाई है. आप कविता का बड़ा नाम हैं फिर भी मैं आपकी कविताओं को मौसम के पहले फूल की ही तरह देखता और समझने का प्रयास करता हूँ.
हमेशा की तरह इस बार भी गहरे भावों वाली कविता,
ReplyDeleteकुछ सोचती हुयी , किसीको पढ़ती हुयी
झुंझलाता हूं कि अच्छी कविताएं कभी कभी देर से क्यों पढने को मिलती है.
ReplyDeleteबधाई.
कितनी अच्छी है यह धरती
ReplyDeleteवह जीना चाहता है
बरसों तक इस धरती पर
और मैं उसके साथ
जन्मों तक ...
Roz marra ke jeevan se kuch khilte huve rang aapne apni rachna mein utaare hain .... jeevan mein har rang hota hai ... khushi, krodh, pyar, kshobh par fir bhi jina unke saath janmon tak ..... ye laalsa rahti hai insaan mein .... Sahaj hi likha hai aapne is baat ko is rachna mein ... saarthak hai ...
उसकी आँखें जादू की तलवार सी
ReplyDeleteकाटती रहती हैं मुझे
पर मेरी आस्था है फिर भी जादू में
उसका जादू नहीं होता कभी फेल
पद्मजा जी बधाई हो बहुत अच्छी हैं ये पंक्तियाँ हमेशा की तरह.हमारा अभिवादन और बधाई भी स्वीकारें हमेशा की तरह
मेरे न होने पर
ReplyDeleteमेरे होने को साबित करने की जिद में
खींचकर मेरी तस्वीर
कर डालता है टुकड़े -टुकड़े
और फिर से जोड़कर
देता है एक नई विधा को जन्म
main bahut prabhit hui yahan aakar ,man ke udhedbun par rachi hui ye rachna man ko sparsh kar gayi ,mujhe rajasthan se behad prem hai ,ek lamba waqt yaadon ka us mitti se juda hai ,
वाहवा..... सुंदर कविता...
ReplyDeletemuflis dk
ReplyDelete"kavita meiN mn ke tamaam jazbaat moujood haiN
tamaam....maane tamaam....ek khaalipan bhi !!
aur khaamoshi ki zabaan ka ehsaas bhi...
haaaaN ! dil ko dimaag se ijaazat leni padtee hai...bs .
abhivaadan ."2009/11/23
मुफ़लिस जी , ई मेल पर मिली आपकी राय मैनें यहाँ पेस्ट करदी है ,आपकी इच्छा के मुताबिक .
बहुत बहुत धन्यवाद .
bahut hi sunder kavitayen hain , badhaee dil se
ReplyDelete